छाया बनकर रह गई थी।
दूसरो से उम्मीदे लगा रही थी।
भूल गई कि खुद का भी अस्तित्व है।
रोशनी कहा से मिलती।
जब सारे दरवाजे खुद ही बंद किए थे।
अंधेरा था…
सोचा उठकर खिड़की खोलु।
कमज़ोर थी…
आँखें बंद कर के मन में झांका|
क्या देखा?
काला अंधेरा, क्योंकि मन की आँखें बंद थी।
अपनी ख्वाहिशों को मरते देखा तो ज्ञात हुआ कि अभी तो सफर लंबा है।
जो सपने देखे थे खुली आँखो से, पूरे करने रहते है।
हिम्मत हुई, खड़ी हुई।
एक खिड़की खोली,
रोशनी से भरी किरणों ने मेरे मन को भिगो दिया।
रोशनी के छींटे पड़ने पर मेरे मन ने आँखे खोली।
उजाला देखकर आँखे तिलमिलाई।
पर धीरे-धीरे उजाले को कैद करके चमकी।
रोशनी है…
खुद पर भरोसा किए खड़ी हूँ ।
आत्मविश्वासी हूँ।
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